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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

छायावाद के कवि-चतुष्टय में से प्रसादजी, समाज और सभ्यता की व्याख्या करते हुए अरूप आध्यात्मिक सामरस्य्वाद की ओर निकल गए, संसारातीत, रहस्यवाद की आनंदमयी भूमि में विचरण करने लगे, महादेवीजी समाज और सभ्यता के प्रश्नों के चक्कर में ही नहीं पड़ीं, काव्य द्वारा। केवल निराला संघर्षानुभवों द्वारा आज की जनस्थिति की ओर उन्मुख हुए।