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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

जीवन ऐसी कविता है जो छंदों के कठोर अनुशासन में चुप नहीं होती, बल्कि इससे अपनी आंतरिक स्वतंत्रता और समता को और भी अधिक प्रकट करती है।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार