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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

जीवन एक अमर जवानी है; इसे उस आयु से नफ़रत है जो इसकी गति में बाधक हो, जो दीपक की छाया की तरह जीवन का पीछा करती हो।

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार