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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

जिस प्रकार कला अपने आभ्यंतर नियमों के कठोर अनुशासन के बिना अपंग या विकृत होती है; अथवा अभाव बनकर रहती है, उसी प्रकार व्यक्ति-स्वातंत्र्य अपनी अंतरात्मा के कठोर नियमों के अनुशासन के बिना—निरर्थक और विकृत हो जाता है, खोखला हो जाता है।