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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

जगत-जीवन के संवेदनात्मक ज्ञान और ज्ञानात्मक संवेदना में समाई हुई मार्मिक आलोचना-दृष्टि के बिना कवि-कर्म अधूरा है।