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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

हमारी संस्कृति का बहता पानी इतना कम हो गया कि बाँध बाँधना पड़ा, परंतु चुपचाप पानी न बहने के कारण सड़ा जा रहा है।