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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

हमारी साहित्य-चिंता या कलात्मक सृष्टि का विकास तभी होगा, जब हम वास्तविक जीवन में व्यापक तथा विविध जीवनानुभवों से संपन्न होंगे, तथा हम विक्षुब्ध उत्पीड़ित मानवता के (वायवीय नहीं, मूर्त) आदर्शों से एकात्म होंगे।