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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

हमारी भाव-संपदा, ज्ञान-संपदा और अनुभव-समृद्धि तो उस अंतर्तत्व-व्यवस्था ही का अभिन्न अंग है कि जो अंतर्तव्य-व्यवस्था, हमने बाह्य जीवन-जगत के आभ्यंतरीकरण से प्राप्त की है।