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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

ज्ञान, प्रेम और शक्ति—इन तीन धाराओं का जहाँ एक साथ संगम होता है, वहीं पर आनंदतीर्थ बन जाता है।

अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी