Font by Mehr Nastaliq Web

रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

जनसाधारण कहने से जिस प्रकांड जीव का बोध होता है, उसके प्रयोजन स्वभावतः बड़े भारी और सीमाहीन होते हैं।

अनुवाद : अमृत राय