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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

बुद्धि स्वयं अनुभूत विशिष्टों का सामान्यीकरण करती हुई; हमें जो ज्ञान प्रस्तुत करती है, उस ज्ञान में निबद्ध ‘स्व’ से ऊपर उठने, अपने से तटस्थ रहने, जो है उसे अनुमान के आधार पर और भी विस्तृत करने की प्रवृत्ति होती है।