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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

बुद्धि जो कि अलिप्त, निर्मम, स्व-पर-निरपेक्ष कही जाती है, उसी के क्षेत्र में इतनी आत्म-केंद्रिता का विकास—पूँजीवादी समाज की विशेषता है। फिर साहित्य और कला का क्या कहना।