देवीशंकर अवस्थी के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
देवीशंकर अवस्थी के प्रसिद्ध
और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण
समकालीनता-बोध से रहित आलोचना को आलोचना नहीं कहा जा सकता—शोध, पांडित्य या कुछ और भले ही कह दिया जाए।
जीनियस की प्रशंसा नहीं होती। या तो उसकी निंदा होती है या फिर applause होता है। प्रशंसा (Praise) सदैव ‘मीडियाकर’ की होती है। मसलन यह बहुत अच्छा पढ़ाता है, या उसका स्वभाव बहुत अच्छा है या वह बड़ा सज्जन है। ये सारे शब्द और विशेषण ‘मीडियाकर’ के पर्याय हैं।
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वास्तव में श्रेष्ठ साहित्य की रचना परंपरा के भीतर युग के यथार्थ को समेट लेती है।
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जीवन की व्याख्या ही नहीं करनी पड़ती है, बल्कि जीवित रहने की प्रक्रिया भी खोजनी पड़ती है।
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