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देवीशंकर अवस्थी के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

देवीशंकर अवस्थी के प्रसिद्ध

और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

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कविता तुलना से बनती है।

देवीशंकर अवस्थी

आज भी कविता और गद्य की भाषा का अंतर भावावेश की भाषा का अंत है।

देवीशंकर अवस्थी

ख्याति मिलने की कुंठा भीतर-भीतर विरोधी बना देती है।

देवीशंकर अवस्थी

समकालीनता-बोध से रहित आलोचना को आलोचना नहीं कहा जा सकता—शोध, पांडित्य या कुछ और भले ही कह दिया जाए।

देवीशंकर अवस्थी

कला की आत्मा है सौंदर्यानुभूति।

देवीशंकर अवस्थी

अनुभूति की अभिव्यक्ति ही कला का रूप धारण करती है।

देवीशंकर अवस्थी

युग चेतना की अभिव्यक्ति के लिए अपना एक छंद चाहिए।

देवीशंकर अवस्थी

वास्तविक कला कभी अशिव नहीं होती।

देवीशंकर अवस्थी

जीनियस की प्रशंसा नहीं होती। या तो उसकी निंदा होती है या फिर applause होता है। प्रशंसा (Praise) सदैव ‘मीडियाकर’ की होती है। मसलन यह बहुत अच्छा पढ़ाता है, या उसका स्वभाव बहुत अच्छा है या वह बड़ा सज्जन है। ये सारे शब्द और विशेषण ‘मीडियाकर’ के पर्याय हैं।

देवीशंकर अवस्थी

वास्तव में श्रेष्ठ साहित्य की रचना परंपरा के भीतर युग के यथार्थ को समेट लेती है।

देवीशंकर अवस्थी

जब एक सही पंक्ति बन जाती है तो उसमें परिवर्तन संभव नहीं।

देवीशंकर अवस्थी

आलोचना का प्राथमिक दायित्व नवलेखन के प्रति ही है।

देवीशंकर अवस्थी

कला का मूल उत्स आनंद है।

देवीशंकर अवस्थी

कला सुनीतिमूलक है और दुर्नीतिमूलक।

देवीशंकर अवस्थी

कला-सृष्टि जीवन की सार्थकता है। जीवन से उसे अलग देखना अपराध है।

देवीशंकर अवस्थी

जीवन की व्याख्या ही नहीं करनी पड़ती है, बल्कि जीवित रहने की प्रक्रिया भी खोजनी पड़ती है।

देवीशंकर अवस्थी

कला मनुष्यत्व का चरम उत्कर्ष है।

देवीशंकर अवस्थी

जो चिरंतन है, वही ग्राह्य है।

देवीशंकर अवस्थी

शाश्वत सत्य का समावेश ही काव्य और कला को स्थायित्व प्रदान करता है।

देवीशंकर अवस्थी