प्रेमचंद के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

प्रेमचंद के 10 प्रसिद्ध

और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

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जो अपने घर में ही सुधार कर सका हो, उसका दूसरों को सुधारने की चेष्टा करना बड़ी भारी धूर्तता है।

प्रेमचंद

क्रोध अत्यंत कठोर होता है। वह देखना चाहता है कि मेरा एक वाक्य निशाने पर बैठता है या नहीं, वह मौन को सहन नहीं कर सकता।

प्रेमचंद

जन-समूह विचार से नहीं, आवेश से काम करता है। समूह में ही अच्छे कामों का नाश होता है और बुरे कामों का भी।

प्रेमचंद

स्पष्टवादिता मनुष्य का एक उच्च गुण है।

प्रेमचंद

किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणी मात्र का धर्म है।

प्रेमचंद

कविता सच्ची भावनाओं का चित्र है और सच्ची भावनाएँ चाहे वे दुःख की हो या सुख की, उसी समय संपन्न होती है जब हम दुःख या सुख का अनुभव करते हैं।

प्रेमचंद

डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूँगा हो जाता है।

प्रेमचंद

जिस प्रकार बिरले ही दुराचारियों को अपने कुकर्मों का दंड मिलता है, उसी प्रकार सज्जनता का दंड पाना अनिवार्य है।

प्रेमचंद

अपमान को निगल जाना चरित्र-पतन की अंतिम सीमा है।

प्रेमचंद

जनता क्रोध में अपने को भूल जाती है, मौत पर हँसती है।

प्रेमचंद

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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