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रीतिकाल के आचार्य कवियों में से एक। भरतपुर नरेश प्रतापसिंह के आश्रित। भावुक, सहृदय और विषय को स्पष्ट करने में कुशल कवि।

रीतिकाल के आचार्य कवियों में से एक। भरतपुर नरेश प्रतापसिंह के आश्रित। भावुक, सहृदय और विषय को स्पष्ट करने में कुशल कवि।

सोमनाथ का परिचय

सोमनाथ मिश्र विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इनका दूसरा नाम शशिनाथ भी है। ये गंगाधर मिश्र के अनुज और नीलकंठ मिश्र के पुत्र थे। इनका वंश छिरोरा वंश के माथुर ब्राह्मण तथा प्रसिद्ध नरोत्तम मिश्र के परिवार में हुआ था। कहा जाता है कि ये जयपुर नरेश महाराज रामसिंह के मंत्र गुरु थे। इनके जन्मस्थान और काल के विषय में कुछ निश्चित रूप से पता नहीं चलता किंतु इनकी कृतियों से इनका कविताकाल सन् 1733 से सन् 1753 ई. ठहरता है। सोमनाथ भरतपुर के महाराज बदनसिंह के छोटे पुत्र प्रतापसिंह के आश्रित कवि थे और जैसा कि इस दोहे-"कही कुंवर परताप ने सभा मध्य सुखपाय। सोमनाथ हमको सरस पोथी देउ बनाय।" —से पता चलता है कि उन्हीं के आग्रह पर इन्होंने अपने प्रसिद्ध रीतिग्रंथ 'रसपीयूनिधि' की रचना सन् 1737 ई. में की। यह काव्यशास्त्र पर एक पूर्ण ग्रंथ है। इस बृहत् ग्रंथ में छंद, काव्य प्रयोजन, ध्वनि, रस तथा अलंकार आदि का वर्णन है। दूसरे ग्रंथ ‘शृंगार विलास’ में शृंगार रस तथा नायिका भेद की सामग्री है। इस ग्रंथ के अतिरिक्त इनके तीन ओर ग्रंथ प्राप्त हुए हैं। उनके नाम 'कृष्णलीला पंचाध्यायी’, 'सुजान विलास' और 'माधव विनोद नाटक' हैं। इन ग्रंथों को देखने में उनकी चतुर्विध प्रतिभा के दर्शन होते हैं। जहाँ 'रसपीयूषनिधि' में उनका शास्त्रीय ज्ञान, उनकी विलक्षण विवेचना शक्ति का परिचय मिलता है, वहीं ‘सुजान विलास' और 'माधव विनोद' में वे हिंदी के प्रबंध कवि के रूप में अवतरित होते हैं।

सोमनाथ का स्थान रीतिकाल के कवियों में महत्त्व का है। ये कवित्व की दृष्टि से मतिराम तथा देव के समान भाव-व्यंजक कवि हैं। इनमें उक्ति-वैचित्र्य के स्थान पर सहृदयता अधिक है। ध्वनि-समन्वित शृंगार-रस की अभिव्यक्ति में विशेष सफलता मिली है। इनके काव्य में मतिराम जैसा प्रसाद तथा उत्साह है और भूषण जैसी ओजस्विता भी पाई जाती है। कल्पना-वैभव की दृष्टि से ये किसी भी श्रेष्ठ रीतिकाल के कवि के समकक्ष हैं पर इनमें भावात्मक अभिव्यक्ति की सरलता सर्वत्र बनी रही है। इसके बावजूद सोमनाथ में भाषा का संगीत तथा निखार अन्य प्रतिष्ठित कवियों से कम है। ये मुक्तक कविताओं में भी अपनी मार्मिकता और प्रसाद पूर्ण व्यंग्य के कारण प्रसिद्ध हैं। कविता ये 'ससिनाथ' के नाम से लिखते हैं। 'रसपीयूषनिधि' में कहीं-कहीं व्याख्या के रूप में इन्होंने ब्रजभाषा गद्य का प्रयोग भी किया है।

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