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सिद्धेश्वर सिंह

1963 | ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश

‘कर्मनाशा’ कविता-संग्रह के कवि। बतौर अनुवादक भी उल्लेखनीय।

‘कर्मनाशा’ कविता-संग्रह के कवि। बतौर अनुवादक भी उल्लेखनीय।

सिद्धेश्वर सिंह की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 27

उद्धरण 25

आटे को जितनी बार छाना जाए थोड़ा-बहुत चोकर तो निकल ही आता है।

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फूलों को तोड़कर गुलदान में सजाने वाले शायद ही कभी किसी बीज का अंकुरण देख पाते होंगे।

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भरोसा बनाए रखो कि तुम्हें भाषा पर सचमुच भरोसा है और हाँ, इसकी कोई समय-सीमा नहीं।

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जिस किताब में अच्छी कविता होती है, उसके पास दीमकें नहीं फटकतीं।

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आँच केवल आग में ही नहीं पाई जाती। कभी एकांत मिले तो अपने लिखे हुए के तापमान को जाँचो।

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