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श्यामसुंदर दास

1875 - 1945 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

समादृत आलोचक, भाषा विज्ञानी, संपादक और निबंधकार। ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ और ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ के संस्थापक।

समादृत आलोचक, भाषा विज्ञानी, संपादक और निबंधकार। ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ और ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ के संस्थापक।

श्यामसुंदर दास की संपूर्ण रचनाएँ

निबंध 3

 

उद्धरण 23

वैज्ञानिक वर्तमान युग बनाते हैं और कवि उनके भूत और भविष्य की आलोचना करते हैं—इसी मार्मिक और चुभने वाली आलोचना को कविता कहते हैं।

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कवि अपनी कल्पना के इंगित से सहस्रों वर्षों तक—अमित काल पर्यंत—संसारव्यापी समाज के मन पर शासन करता है।

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कविता में सत्यता से अभिप्राय उस निष्कपटता से है और उस अंतर्दृष्टि से है; जो हम अपने घावों या मनोवेगों का व्यंजन करने में, उनका हम पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे प्रत्यक्ष करने में तथा उनके कारण हममें जो सुख-दु:ख, आशा-निराशा, आश्चर्य-चमत्कार, श्रद्धा-भक्ति आदि के भाव उत्पन्न होते हैं—उनको अभिव्यक्त करने में प्रदर्शित करते हैं।

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भावों की अभिव्यक्ति की शैली ही कविता और कलाओं का रूप धारण करती है।

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विज्ञान में जो बुद्धि है, दर्शन में जो दृष्टि है—वही कविता में कल्पना है।

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