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शंकर शैलेंद्र

1923 - 1966 | रावलपिंडी, पंजाब

‘तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यक़ीन कर...’ के रचयिता और लोकप्रिय गीतकार। सिनेमा और प्रगतिशील आंदोलन से संबद्ध।

‘तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यक़ीन कर...’ के रचयिता और लोकप्रिय गीतकार। सिनेमा और प्रगतिशील आंदोलन से संबद्ध।

शंकर शैलेंद्र की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 13

उद्धरण 3

यदि शीत ऋतु गयी है, तो क्या वसंत ऋतु अधिक दूर हो सकती है?

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हम भूत और भविष्य को देखते हैं और जो नहीं है उसकी कामना करते हैं। हमारा निष्कपट हास्य भी किसी वेदना से युक्त होता है।

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आनंद की भावना! तुम कभी-कभी आती हो।

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