Nirmala Putul's Photo'

निर्मला पुतुल

1972 | दुमका, झारखंड

सुपरिचित कवयित्री। आदिवासी संवेदना-सरोकारों के लिए उल्लेखनीय।

सुपरिचित कवयित्री। आदिवासी संवेदना-सरोकारों के लिए उल्लेखनीय।

निर्मला पुतुल का परिचय

मूल नाम : निर्मला पुतुल

जन्म : 06/03/1972 | दुमका, झारखंड

निर्मला पुतुल का जन्म 6 मार्च 1972 को झारखंड के दुमका ज़िले के दुधनी कुरुवा ग्राम में एक ग़रीब आदिवासी परिवार में हुआ। शिक्षा-दीक्षा सामान्य रही। आसानी से आजीविका पा सकने के लिए नर्सिंग का कोर्स किया। बाद में इग्नू से राजनीतिशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। दो दशकों से अधिक समय से आदिवासी महिलाओं के विस्थापन, पलायन, उत्पीड़न, लैंगिक भेदभाव, मानवाधिकार, संपत्ति का अधिकार जैसे विषयों पर व्यक्तिगत, सामूहिक और संस्थागत स्तर पर सक्रिय रही हैं। इसके साथ ही ग्रामीण, पिछड़ी, दलित, आदिवासी और आदिम जनजाति की महिलाओं के बीच शिक्षा एवं जागरूकता के प्रसार के लिए विशेष प्रयासरत रही हैं। इस उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रत्यक्ष राजनीति में उतर आने से भी परहेज़ नहीं किया और अपने गृह पंचायत से मुखिया पद के लिए चुनी गईं।

कविता-लेखन की शुरुआत मातृभाषा संताली में की थी। फिर हिंदी में भी लिखने लगी। अपनी कविताओं के विद्रोही स्वर और अपने समाज की यथार्थपरक अभिव्यक्ति के लिए वृहत रूप से चिह्नित और प्रशंसित हुईं। उनका पहला कविता संग्रह ‘अपने घर की तलाश में’ संताली-हिंदी द्विभाषिक संग्रह के रूप में 2004 में प्रकाशित हुआ। हिंदी के वृहत चर्चा-प्रदेश में उनका प्रवेश ‘नगाड़े की तरह बजते शब्द’ (2005) कविता-संग्रह के साथ हुआ। इसे पहली बार जंगल के बाहर शहर में किसी आदिवासी स्त्री द्वारा कविता के स्वर में अपने अस्तित्व का नगाड़ा बजाने की घटना की तरह देखा गया। एक आदिवासी स्त्री द्वारा उसके ‘स्व’ की तलाश, पुरुष व्यवस्था और पितृसत्तात्मकता के प्रति विद्रोह, आदिवासी समाज और आदिवासी स्त्री की वेदना, आदिवासी समाज व्यवस्था के गुण-दोष, तथाकथित सभ्य शहरी समाज पर व्यंग्य, मुक्ति की कामना जैसे वृहत विमर्श बिंदुओं में उनकी कविताओं का पाठ हुआ। उनका तीसरा कविता-संग्रह ‘बेघर सपने’ 2014 में प्रकाशित हुआ।  

उनकी कविताओं का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओँ में हुआ है। उनकी कविताएँ पाठ्य-पुस्तकों में भी शामिल की गई हैं। विभिन्न विश्वविद्यालयों में उनकी कविताओं पर शोध-प्रबंध लिखे गए हैं। उनके जीवन पर आधारित फ़िल्म ‘बुरू-गारा’ को वर्ष 2010 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ। 

वह साहित्य अकादेमी के ‘साहित्य सम्मान’ भारतीय भाषा परिषद के राष्ट्रीय युवा सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान सहित दर्जनाधिक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ी गई हैं। इसके अतिरिक्त, उन्हें विभिन्न संस्थानों से फ़ेलोशिप प्राप्त हुए हैं।  

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