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जान कवि

1614 - 1664 | फ़तेहपुर, राजस्थान

सूफ़ी संत, नीतिकार और रासो-काव्य के रचयिता। ब्रजभाषा पर अधिकार। वस्तु-वर्णन के लिए दोहा और सोरठा छंद का चुनाव।

सूफ़ी संत, नीतिकार और रासो-काव्य के रचयिता। ब्रजभाषा पर अधिकार। वस्तु-वर्णन के लिए दोहा और सोरठा छंद का चुनाव।

जान कवि का परिचय

उपनाम : 'न्यामत खाँ जान'

जन्म :फ़तेहपुर, राजस्थान

निधन : सीकर, राजस्थान

न्यामत खाँ राजस्थान राज्य के सीकर जिले के समीप बसे फतेहपुर से संबंधित हैं। यहाँ कभी कायमखानी नवाबों का राज्य था। फतेहपुर को नवाब खाँ ने बसाया था। इसी के खानदान में न्यामत खाँ पैदा हुए, जो ‘जान’ उपनाम से कविता करते थे। जान का समय अनिश्चित है, किंतु उनकी रचनाओं के आधार पर उनका रचनाकाल 1614-1664 ई. ठहरता है।

न्यामत खाँ संस्कृत, अरबी, फ़ारसी, ब्रजभाषा के अधिकारी विद्वान थे। इनकी ऐतिहासिक दृष्टि भी स्पष्ट थी। 'कायम खाँ रासो' में जान ने कायमखानी वंश का इतिहास विस्तार के साथ प्रस्तुत किया गया है। इनकी छोटी-बड़ी 73 रचनाओं का पता चला है, जिनमें ‘कायमखाँ रासो' जैसी एकाध कृति ही प्रकाशित हुई है। इनके नाम से कुछ प्रेम-कथाएँ भी प्रचलित हैं जिनमें 'कनकावती', 'कामलता', 'मधुकर मालती', 'रतनावली', 'छीता' आदि उल्लेखनीय हैं। जान की कृतियों में कहानीकार की क्षमता मिलती है, काव्य की दृष्टि से वे विशेष महत्त्व की नहीं हैं। जान की भाषा सरल और प्रवाहयुक्त है।

जान की प्रसिद्धि का आधार ग्रंथ ‘कायम रासो’ है। इस ग्रंथ की रचना करने का उद्देश्य कायम खाँ के वंश की श्रेष्ठता दर्शाना रहा है। अतः इस ग्रंथ में कायम खाँ के वंश से संबंधित युद्धों का वर्णन अतिशयोक्ति युक्त शैली में हुआ है। इसका प्रधान छंद दोहा है लेकिन बीच-बीच में कवि ने युद्धानुकूल छंदों का प्रयोग करते हुए युद्ध विषयक रूढियों का भी पालन किया है। अनेक युद्धों का वर्णन होने से पुनरुक्तियों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से हुआ है। वीर रस प्रधान होने से शैली के साथ-साथ शब्दों और अलंकारों का प्रयोग भी उसी के अनुकूल हुआ है। कवि ने इस काव्य में उपमा अलंकार का उपयोग प्रचुरता के साथ किया है और कतिपय उपमाएँ एकाधिक बार प्रयुक्त की गई हैं। सरल भाषा और छंदों के कुशलतापूर्वक निर्वाह के कारण यह काव्य सहज रूप से आकर्षक बन पड़ा है। वीर रस प्रधान काव्य होते हुए भी कवि ने बीच-बीच में यथा-प्रसंग अन्य रसों की छटा भी दिखलाने का प्रयास किया है। अतः इस काव्य में अनेक ऐसे छंद भी देखने को मिलते हैं, जो कवि की काव्य-प्रतिभा को दर्शाते हैं।

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