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हरिव्यास देव

सोलहवीं सदी के भक्त कवि। श्रीभट्ट के शिष्य। 'निंबार्क संप्रदाय' से संबद्ध। 'ब्रजभाषा में रचित ग्रंथ 'महावाणी' के लिए स्मरणीय।

सोलहवीं सदी के भक्त कवि। श्रीभट्ट के शिष्य। 'निंबार्क संप्रदाय' से संबद्ध। 'ब्रजभाषा में रचित ग्रंथ 'महावाणी' के लिए स्मरणीय।

हरिव्यास देव के दोहे

पूरन प्रेम प्रकास के, परी पयोनिधि पूरि।

जय श्रीराधा रसभरी, स्याम सजीवनमूरि॥

अमृत जस जुग लाल कौ, या बिनु अँचौ आन।

मो रसना करिबो करो, याही रस को पान॥

निरखि-निरखि संपति सुखै, सहजहि नैन सिराय।

जीवतु हैं बलि जाउँ या, जग माँही जस गाय॥

तिहि समान बड़भाग को, सो सब के शिरमौर।

मन वच, क्रम सर्वद सदा, जिन के जुगलकिशोर॥

शुद्ध, सत्व परईश सो, सिखवत नाना भेद।

निर्गुन, सगुन बखानि के, बरनत जाको बेद॥

बिधि निषेध आदिक जिते, कर्म धर्म तजि तास।

प्रभु के आश्रय आवहीं, सो कहिये निजदास॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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