हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंध
कुटज
कहते हैं, पर्वत शोभा-निकेतन होते हैं। फिर हिमालय का तो कहना ही क्या! पूर्व और अपार समुद्र-महोदधि और रत्नाकर—दोनों को दोनों भुजाओं से थाहता हुआ हिमालय 'पृथ्वी का मानदंड’ कहा जाए तो ग़लत क्यों है? कालिदास ने ऐसा ही कहा था। इसी के पाद-देश में यह जो शृंखला
शिरीष के फूल
जहाँ बैठ के यह लेख लिख रहा हूँ उसके आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ, शिरीष के अनेक पेड़ हैं। जेठ की जलती धूप में, जबकि धरित्री निर्धूम अग्निकुंड बनी हुई थी, शिरीष नीचे से ऊपर तक फूलों से लद गया था। कम फूल इस प्रकार की गर्मी में फूल सकने की हिम्मत करते हैं। कर्णिकार
क्या निराश हुआ जाए
मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा
भारतीय संस्कृति की देन
भारतीय संस्कृति पर कुछ कहने से पहले मैं यह निवेदन कर देना कर्त्तव्य समझता हूँ कि मैं संस्कृति को किसी देश-विशेष या जाति-विशेष की अपनी मौलिकता नहीं मानता। मेरे विचार से सारे संसार के मनुष्यों की एक ही सामान्य मानव-संस्कृति हो सकती है। यह दूसरी बात है
पंडितों की पंचायत
यह संयोग की बात कही जाएगी कि इस बार के एकादशी वाले झगड़े की सभा में मुझे भी उपस्थित रहना पड़ा। मैं बिलकुल ही नहीं जानता था कि काशी के पंचांग-निर्माताओं ने गाँव में रहने वाले विश्वासपरायण पंडितों को आलोढ़ित कर दिया है। वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी किसी
नाख़ून क्यों बढ़ते हैं?
बच्चे कभी-कभी चक्कर में डाल देने वाले प्रश्न कर बैठते हैं। अल्पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ दिया कि आदमी के नाख़ून क्यों बढ़ते हैं, तो मैं कुछ सोच ही नहीं सका। हर तीसरे दिन नाख़ून बढ़ जाते हैं, बच्चे कुछ दिन तक अगर
प्राचीन भारत में मदनोत्सव
संस्कृत के किसी भी काव्य, नाटक, कथा और आख्यायिका को पढ़िए, वसंत ऋतु का उत्सव उसमें किसी-न-किसी बहाने अवश्य आ जाएगा कालिदास तो वसंतोत्सव का बहाना ढूँढते रहते से लगते हैं। मेघदूत वर्षा ऋतु का काव्य है, पर यक्षप्रिया के उद्यान के वर्णन के प्रसंग में प्रिया
हमारे पुराने साहित्य के इतिहास की सामग्री
हिंदी साहित्य का इतिहास केवल संयोग और सौभाग्यवश प्राप्त हुई पुस्तकों के आधार पर नहीं लिखा जा सकता। हिंदी का साहित्य संपूर्णतः लोक भाषा का साहित्य है। उसके लिए संयोग से मिली पुस्तकें ही पर्याप्त नहीं है। पुस्तकों में लिखी बातों से हम समाज की किसी विशेष
भारतीय संस्कृति की देन
भारतीय संस्कृति पर कुछ कहने से पहले मैं एक निवेदन कर देना कर्त्तव्य समझता हूँ कि संस्कृति को किसी देश-विशेष या जाति-विशेष की अपनी मौलिकता नहीं मानता। मेरे विचार सारे संसार के मनुष्यों की एक सामान्य मानव-संस्कृति हो सकती है। यह दूसरी बात है कि वह व्यापक
आम फिर बौरा गए
बसंतपंचमी में अभी देर है, पर आम अभी से बौरा गए। हर साल ही मेरी आँखें इन्हें खोजती हैं। बचपन में सुना था कि बसंतपंचमी के पहले अगर आम्रमंजरी दिख जाए तो उसे हथेली पर रगड़ लेना चाहिए। क्योंकि ऐसी हथेली साल भर तक बिच्छू के ज़हर को आसानी से उतार देती है। बचपन