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देवादास

रामस्नेही संप्रदाय से संबद्ध संत कवि।

रामस्नेही संप्रदाय से संबद्ध संत कवि।

देवादास की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 9

रसना सुमिरे राम कूँ, तो कर्म होइ सब नास।

'देवादास' ऐसी करै, तो पावै सुक्ख बिलास॥

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तिरे, तिरावै, फिर तिरे, तिरताँ लगै बार।

देवादास रटि राम कूँ, बहुत ऊतर्या पार॥

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जल तिरबे को तूँ बड़ा, भौ तिरबे कूँ राम।

'देवादास' सब संत कह, सुमरो आठूँ जाम॥

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देवादास कह सुरत सों, वै मूरख बड़ा अग्यान।

पगथ्या पाड़या हाथ सूँ, करै महल को ध्यान॥

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ररा ममा को ध्यान धरि, यही उचारै ग्यान।

दुविध्या तिमिर सहजैं मिटै, उदय भक्ति को भान॥

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चौकड़ियाँ 9

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