Font by Mehr Nastaliq Web
noImage

दयाराम

1833 - 1909

सतसई परंपरा के नीति कवि।

सतसई परंपरा के नीति कवि।

दयाराम की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 110

लाल लली ललि लाल की, लै लागी लखि लोल।

त्याय दे री लय लायकर, दुहु कहि सुनि चित डोल॥

लाल को लली से और लली को लाल से मिलने की इच्छा है। दोनों मुझे कहते हैं, अरी तू उससे मुझे मिलाकर विरहाग्नि को शांत कर। इनकी बातें सुनते-सुनते मेरा भी चित्त विचलित हो गया है।

चकमक सु परस्पर नयन, लगन प्रेम परि आगि।

सुलगि सोगठा रूप पुनि, गुन-दारू दूड जागि॥

चकमक के सदृश नेत्र जब आपस में टकराते हैं तो उनसे प्रेम की चिनगारियाँ निकलती हैं। फिर रूप रूपी सोगठे (रूई) पर इनके गिरने से आग सुलग जाती है, किंतु पूर्णतया प्रज्वलित तभी होती है जब उसका संयोग गुण रूपी शराब से होता है।

ऐसो मीठो नहिं पियुस, नहिं मिसरी नहिं दाख।

तनक प्रेम माधुर्य पें, नोंछावर अस लाख॥

प्रेम जितना मिठास दाख में है, मिसरी में और अमृत में। प्रेम के तनिक माधुर्य पर ऐसी लाखों वस्तुएँ न्योछावर है।

गोकुल ब्रंदावन लिहू, मोपें जुगजीवन्न।

पलटें मोको देहु फिर, गोकुल ब्रंदाबन्न॥

कवि कहता है, मेरी इंद्रियो के समूह (गोकुल) को आप लीजिए, अपने वश में कर लीजिए। तुलसीदल (वृंदा) और जल (वन) अर्थात् वृंदावन से ही आपकी मैं मनुहार कर सकता हूँ, अतः कृपा करके इन्हें स्वीकार कीजिए और इनके बदले में आप मुझे अपने प्रिय धाम गोकुल और वृंदावन में रहने का सौभाग्य प्रदान कीजिए।

कटि सों मद रति बेनि अलि, चखसि बड़ाई धारि।

कुच से बच अखि ओठ भों, मग गति मतिहि बिसारि॥

हे सखी! यदि तू अपने प्रिय से मान करती है तो अपनी कटि के समान क्षीण (मान) कर, यदि प्रीति करती है तो अपनी चोटी के समान दीर्घ (प्रीति) कर, अगर बड़प्पन धारण करती है तो अपने नेत्रों-सा विशाल कर। पर अपने कुचों के समान कठोर (वचन), ओठों के समान नेत्रों की ललाई (क्रोध), भृकुटी के समान कुटिल (मार्ग पर गमन) और अपनी गति के समान (चंचल) मति को सदा के लिए त्याग दे।

सोरठा 4

 

उद्धरण 7

अबला-जन्म ही पराधीन है।

  • शेयर

धन के बिना संसार व्यर्थ है परंतु अत्यधिक धन भी व्यर्थ है, जैसे अन्न के बिना तन नहीं रहता, परंतु अत्यधिक भोजन करने से प्राण चले जाते हैं।

  • शेयर

धर्मात्मा के हितार्थ किया गया अधर्म भी धर्म है और धर्मात्मा के अहित के लिए किया गया धर्म भी अधर्म है।

  • शेयर

मेरा पति दृढ़ निश्चय के महल में निवास करता है। वहीं रहता है ब्रज-लाड़ला! जो वहाँ उसके पास जाता है उसे उसके दर्शन होते हैं। जो भूले हुए हैं, वे उसकी खोज में दूसरे सदनों में भटकते रहते हैं। किंतु भगवान उन्हें एक भी जगह नहीं मिलता।

  • शेयर

संतों के द्वारा दिया गया संताप भी भला होता है और दुष्टों के द्वारा दिया गया सम्मान भी बुरा होता है। सूर्य तपता है तो जल की वर्षा भी करता है। परंतु दुष्ट के द्वारा दिया गया भक्ष्य भी मछली का प्राण ले लेता है।

  • शेयर

Recitation