ज़िंदगी और जोंक
मुहल्ले में जिस दिन उसका आगमन हुआ, सवेरे तरकारी लाने के लिए बाज़ार जाते समय मैंने उसको देखा था। शिवनाथ बाबू के घर के सामने, सड़क की दूसरी ओर स्थित खँडहर में, नीम के पेड़ के नीचे, एक दुबला-पतला काला आदमी, गंदी लुंगी में लिपटा चित्त पड़ा था, जैसे रात में