पद

पद छंद की ही एक विधा है। छंदों में मात्राओं या वर्णों की संख्या या क्रम निश्चित होते हैं, जबकि पद वर्णों या मात्राओं की गणना से मुक्त होता है। तुकांतता के निर्वाह से पद गेय होते हैं, इसलिए प्राचीन कवियों ने पदों पर शीर्षक के रूप में प्रायः रागों के नाम ही दिए हैं। पदों की परंपरा हिंदी साहित्य में विद्यापति से शुरू हुई जो भक्तिकाव्य से होती हुई छायावाद में महादेवी वर्मा तक निर्बाध चलती रही।

1708 -1787

टीकाकार और भक्त कवि।

सोलहवीं सदी के भक्त कवि। श्रीभट्ट के शिष्य। 'निंबार्क संप्रदाय' से संबद्ध। 'ब्रजभाषा में रचित ग्रंथ 'महावाणी' के लिए स्मरणीय।

1510 -1632

हरिवंश के शिष्य और राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षित। ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के साथ ही तत्त्व-निरूपण के लिए स्मरणीय।

भक्ति-काव्य की कृष्णभक्त शाखा के माधुर्योपासक कवि। 'राधावल्लभ संप्रदाय' के प्रवर्तक।

'राधावल्लभ संप्रदाय' से संबंधित भक्त कवि।

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