पद

पद छंद की ही एक विधा है। छंदों में मात्राओं या वर्णों की संख्या या क्रम निश्चित होते हैं, जबकि पद वर्णों या मात्राओं की गणना से मुक्त होता है। तुकांतता के निर्वाह से पद गेय होते हैं, इसलिए प्राचीन कवियों ने पदों पर शीर्षक के रूप में प्रायः रागों के नाम ही दिए हैं। पदों की परंपरा हिंदी साहित्य में विद्यापति से शुरू हुई जो भक्तिकाव्य से होती हुई छायावाद में महादेवी वर्मा तक निर्बाध चलती रही।

सांगीतिक मधुरिमा के साथ आत्मशुद्धि, विरह और प्रेम को कविता का वर्ण्य-विषय बनाने वाले संतकवि। 'निरंजनी संप्रदाय' से संबद्ध।

1511 -1623

रामभक्ति शाखा के महत्त्वपूर्ण कवि। कीर्ति का आधार-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’। उत्तर भारत के मानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भक्त कवि।

1563 -1646

भक्तिकाल से संबद्ध कवि-संगीतकार। स्वामी हरीदास के शिष्य। सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक।

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