पद

पद छंद की ही एक विधा है। छंदों में मात्राओं या वर्णों की संख्या या क्रम निश्चित होते हैं, जबकि पद वर्णों या मात्राओं की गणना से मुक्त होता है। तुकांतता के निर्वाह से पद गेय होते हैं, इसलिए प्राचीन कवियों ने पदों पर शीर्षक के रूप में प्रायः रागों के नाम ही दिए हैं। पदों की परंपरा हिंदी साहित्य में विद्यापति से शुरू हुई जो भक्तिकाव्य से होती हुई छायावाद में महादेवी वर्मा तक निर्बाध चलती रही।

1415 -1475

भक्तिकालीन निर्गुण संत। स्वामी रामानंद के शिष्य। आजीवन खेती-बाड़ी करते हुए भक्ति-पथ पर गतिशील कृषक-कवि।

1433 -1543

निर्गुण संत। जनश्रुतियों में कबीर के अवतार। हार्दिक सच्चाई और अंतःसाधना के अत्यंत सरस वर्णन के लिए स्मरणीय।

1656

भक्तिकाल के संत कवि। आत्महीनता, नाम स्मरण, विनय और आध्यात्मिक विषयों पर कविताई की। 'निज' की पहचान पर विशेष बल दिया।

कृष्ण-भक्त कवि। गोस्वामी हितहरिवंश के शिष्य। सरस माधुर्य और प्रेम के आदर्श निरूपण के लिए स्मरणीय।

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