पद

पद छंद की ही एक विधा है। छंदों में मात्राओं या वर्णों की संख्या या क्रम निश्चित होते हैं, जबकि पद वर्णों या मात्राओं की गणना से मुक्त होता है। तुकांतता के निर्वाह से पद गेय होते हैं, इसलिए प्राचीन कवियों ने पदों पर शीर्षक के रूप में प्रायः रागों के नाम ही दिए हैं। पदों की परंपरा हिंदी साहित्य में विद्यापति से शुरू हुई जो भक्तिकाव्य से होती हुई छायावाद में महादेवी वर्मा तक निर्बाध चलती रही।

1398 -1518

मध्यकालीन भक्ति-साहित्य की निर्गुण धारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) के अत्यंत महत्त्वपूर्ण और विद्रोही संत-कवि।

1468 -1582

कृष्णभक्त कवि। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। गोस्वामी वल्लभदास के शिष्य। मधुर भाव की भक्ति के लिए स्मरणीय।

1555 -1617

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। काव्यांग निरूपण, उक्ति-वैचित्र्य और अलंकारप्रियता के लिए स्मरणीय। काव्य- संसार में ‘कठिन काव्य के प्रेत’ के रूप में प्रसिद्ध।

भक्तिकाल के संत कवि।

1495 -1580

पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। गोस्वामी वल्लभदास के शिष्य। राधा-कृष्ण की शृंगार-भावना से सिक्त पदों के लिए विख्यात।

रीतिकालीन कृष्ण भक्त कवि।

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