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प्रणय निवेदन

विजेता चौधरी

अन्य

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विजेता चौधरी

प्रणय निवेदन

विजेता चौधरी

और अधिकविजेता चौधरी

    कतेक लाज भय करबैक दुनियासँ

    प्रिय! एक बेर विचार-शून्य भऽ

    हमर समीप तँ आउ

    कने निहारि ली मन भरिकऽ

    कऽ लेबऽ दियऽ प्रेम

    छू लेबऽ दियऽ अधर

    बान्हि लेबऽ दियऽ पाशमे

    नहि रोकू, बस आइ मातऽ दियऽ हमरा

    जीवन शनैः-शनैः बालु सन प्रतिपल हाथसँ छिछलि रहल अछि

    तेँ अंतरंग प्रत्येक क्षणकेँ जीबऽ दियऽ

    पीबऽ दियऽ रूप-रस

    एकबेर चूमऽ दियऽ झूमऽ दियऽ

    निहारऽ दियऽ शुभ्रता

    एना नहि टोकू, नहि रोकू

    आउ! अहूँ हमरे संग निराकार भऽ जाउ

    महाशून्यमे लिप्त होउ

    तहने प्रेमक अथाह आवेगकेँ बुझि सकबैक

    बुझि सकबैक प्रेमक बोधित्वकेँ

    बस, आब लोक-लाजक भाभट समटू

    आइ सत्प्राणकेँ आनन्दित होबऽ दियौक

    एक-दोसरामे निर्लिप्त होबऽ दियौक

    देखियौ, दूर क्षितिजपर...

    प्रथम सन्ध्याकालक कौमार्य ओढ़ने

    चन्द्रमाक लालिमा कतेक तेजस्वी छैक

    मुदा रातुक अन्धकारयुक्त दोसल्ला ओढ़ि

    निमिष भरिमे सम्पूर्ण वातावरण सियाह भऽ जेतैक

    गति एहिना बदलैत छैक

    समय कहाँ ठहरैत छैक ककरो लेल

    तेँ आउ एहि क्षणमे भावनाकेँ निकलऽ दियौक

    बहय दियौक आसक्त आवेग-धाराकेँ

    नहि रोकियौक सिनेहक पियासल धारकेँ

    आइ तृप्त होबऽ दियौक

    काल्हि हम नहि रहब

    समय नहि रहतैक

    प्रेमक एहेन उदवेग सेहो नहि रहतैक

    समयक गति वायुपंखी छैक प्रिये

    आब देर जुनि करू

    आउ, कने आर समीप आउ

    आइ नेहक बरखामे भीजऽ दियऽ

    एकबेर चूमऽ दियऽ झूमऽ दियऽ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : धाराक विरुद्ध (पृष्ठ 73)
    • रचनाकार : विजेता चौधरी
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2019

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