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पश्चिमांचल

pashchimanchal

धीरे-धीरे सूर्य अब

पश्चिमांचल की ओर बढ़ चला है

उसने दिन का काम निपटा लिया है

उसका माथा ठंडा है अब।

मुझे सूर्य की परछाइयाँ मिली हैं

एक-आध, इधर-उधर, छिटकी-बिखरी

उन्हें छूता हूँ,

मुझे तलाश है सूर्य की।

सूर्य ठीक पश्चिम ढलान से उतर जाएगा

अनंत में।

मैंने भी अपना काम निपटा लिया है

सूर्य के साथ भागते सूर्य की परछाइयों के साथ दौड़ में

ठीक पश्चिम दिशा की ढलान की ओर,

लिखकर रख दिया है एक पत्रनुमा किताब में

अपनी ज़िंदगी के रहस्य-वृत्तांत

अनजान पाठक-पथिक-जिज्ञासु के लिए।

मैं सूर्य से पहले पहुँचूँगा पश्चिम की ढलान

और हम एक साथ उतर जाएँगे

अतल अनंत में

किसी जल-प्रपात की तरह।

स्रोत :
  • रचनाकार : आदित्य शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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