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सपने मा नथुनी हेरानी

sapne ma nthuni herani

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

सपने मा नथुनी हेरानी

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    हेराइ गयी हो—हाँ—हेराई गयी हो

    कहूँ सेजवा पइ नथुनी हेराइ गयी हो

    दिन भरि कामु-धामु निपटावउँ सोवउँ राति अकेले

    आजु राति सपने मा कइसउ पहुचि गयी थीं मेले

    इक छोरा वहनइ मिलिगा अपनो सो परइ दिखाई

    बहियन मा भरि लिहिसि हमइ हम कहिते का बतलाई

    टूटि नथुनी दरदिया देवाइ गयी हो

    कहूँ सेजवा पइ नथुनी हेराइ गयी हो

    फिरि सपने की कौनु कहइ अब तौ निदिया आवै

    राति मिलन की रहि-रहि कै बैरिन सी हमइ सतावै

    मन मदहोस अइस हुइगा हइ जस लहराइ नगिनिया

    जान की दुस्मन बनि बइठी है खुद की हमरि नथुनिया

    अब तौ बिरहा की अगिया लगाई गई हो

    कहूँ सेजवा पइ नथुनी हेराइ गयी हो

    आवइ यादि हमइ अब वहिकी तिरछी मार नजरिया

    चन्दन बिरवा करिया लिपटइ पकरै अइसि कमरिया

    गोरि द्याँह पर ओंठन की हरकति असि आगि लगावइ

    चढ़ा नसा तब मदहोसी का आँखिन कुछु देखावइ

    वह तउ सपनेउ का सपनो देखाइ गयी हो

    कहूँ सेजवा पइ नथुनी हेराइ गयी हो

    हुइगो सो हुइगो लेकिन हम अब ऐसे सोइबो

    सोइबो गर तउ भूलिउ के सपने महियाँ खोइबो

    सपनेउ मा फिरि खोइ गएन तउ बहियन मा ना जइबो

    गर बहियन मा पहुँचि गएन तउ नथुनी नाइ देखइबो

    हमरी चोरी का सबते बताई गयी हो

    कहूँ सेजवा पइ नथुनी हेराइ गयी हो

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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