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साथ न होने के दिनों में

saath na hone ke dinon mein

मयंक यादव

अन्य

अन्य

मयंक यादव

साथ न होने के दिनों में

मयंक यादव

और अधिकमयंक यादव

    इस सभ्यता के असंख्य दुःखों में, 

    जहाँ रोना कायरता का प्रतीक है 

    प्रेम इससे अछूता है 

    प्रेम में रोना पवित्र है।

    ये रुलाई अन्य रूलाइयों से अलग है,

    असंख्य झुठों में पवित्र हैं वो झूठ 

    जो हमने एक-दूसरे से मिलने को बोले 

    बची रहे पवित्र झुठों की मर्यादा।

    संवादों में पवित्र हैं वे संवाद 

    जो उन रातों में हुए, जहाँ सिर्फ हम थे। 

    मैं दुःखों की पोटली खोलता था और तुम सब एक-एक करके बाँट लेती थी। 

    बची रहे संवादों की परंपरा।

    तुम्हारे साथ रहने पर होने वाले दुःख 

    तुम्हारे साथ होने के दुखों से कितने भिन्न हैं। 

    दुःख के दिनों में यह बताना कितना कठिन है 

    कि दुःख सुखों की याद में ज़्यादा हैं या तुम्हारी।

    जब कोई रहे, 

    तब तुम रहो, 

    इस रहने को विकल्प समझना, 

    मुझे तुम्हारी ज़रूरत है सब दिनों में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मयंक यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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