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प्रेम-पराग

prem praag

धीरेन्द्र प्रेमर्षि

और अधिकधीरेन्द्र प्रेमर्षि

    आमिल पीबैत कहलनि छोडू हमरा परतारू नै

    बज्जर भऽ गेल मोनक धरती चासेविना समारू नै

    ओना तँ हमहीँ जनकदुलारी, हमहीँ रामपियारी छी

    तहूसँ बढ़िकऽ लवकुशसन बङ्का-वीरक महतारी छी

    प्रेम-सृजन-शक्ति कहबैतो असलमे अबला नारी छी

    तहीसँ जीवन-ओलतीमे टपटप चूबैत एकचारी छी

    छोडू कहुना चोखाएल घाओक खैँठी एना ओदारू नै

    बज्जर भऽ गेल मोनक धरती, चासेविना समारू नै

    त्रेता युगके सीता छी द्वापरके द्रौपदी छी हम

    तीरभुक्तिमे बहैत सभटा निज नोरहिके नदी छी हम

    कोमल-प्रेमिल-हृदयवासिनी युगयुगन्तसँ यदि छी हम

    आइ चेतनासँ परिपूरित नव एक्कइसम सदी छी हम

    दर्दक दस्तावेज लिफाफा, विनु तैयारी फारू नै

    बज्जर भऽ गेल मोनक धरती, चासेविना समारू नै

    नारी-मानक विन पुरखारथ, तकरा आब फजूल बुझू

    सदिखन आगू बढ़बालए पगपग दुन्नूक समतूल बुझू

    सहयात्राकेँ दुनिया भरिकेर खुशी सुखक मूल बुझू

    तखनहि जीवनके बगियामे महमह गमकत फूल बुझू

    विनु जुटियौने प्रेमक खुहरी झुट्ठे आँच पजारू नै

    बज्जर भऽ गेल मोनक धरती, चासेविना समारू नै

    स्रोत :
    • पुस्तक : ई-मिथिला
    • संपादक : बालमुकुन्द
    • रचनाकार : धीरेन्द्र प्रेमर्षि
    • संस्करण : 2025

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