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पिता के लिए

pita ke liye

रविंद्र कुमार

रविंद्र कुमार

पिता के लिए

रविंद्र कुमार

और अधिकरविंद्र कुमार

    पिता के हाथ

    अपने पिता को याद करता हूँ

    मुझे एक बूढ़े होते इंसान का चेहरा याद आता है,

    एक अधेड़ आदमी के खुरदुरे हाथ याद आते हैं,

    उन हाथों पर भाग्य की, यश-वैभव की रेखाएँ

    किसी भगवान ने नहीं खींची थीं,

    खींच ही नहीं सकता कोई भगवान

    उन मज़बूत हाथों पर लकीरें,

    जिन हाथों ने सारी उम्र पत्थरों को तोड़ा,

    उनसे भगवान बनाया और अपनी पीठ पर लादकर ढकेल दिया

    उस भगवान को किसी मंदिर के गर्भगृह में;

    उन मज़बूत हाथों ने कभी हड़प्पा के मज़बूत क़िले में ईंटें ढोई होंगी

    तो कभी खींचा होगा किसी ऋग्वेदिक कबीले में चलने वाले रथ को

    अपनी भुजाओं के जोर से,

    उन हाथों ने बनाई थीं संगमरमर की इमारतें,

    गगनचुंबी अट्टालिकाएँ, भव्य मंदिर और उनमें विराजित भगवान;

    उन हाथों ने इंसानी सभ्यता को रचा

    जिन पर कोई भाग्य की लकीरें नहीं थीं,

    कोई आड़ी तिरछी लकीर जिससे देखकर कोई ज्योतिषी कहे

    कि तुम्हारा अतीत नहीं तो क्या भविष्य उज्ज्वल है,

    जाओ तुम्हें सुख का जीवन सही चैन की मृत्यु नसीब होगी;

    जिन हाथों ने कभी धनुष बनाया था इंद्र का

    तो कभी दे दिया था अँगूठा काटकर किसी मक्कार गुरु के एक इशारे पर;

    वो हाथ सदियों तक इंसान का मैला ढोने को रहे अभिशप्त,

    वो हाथ जिनसे कभी कोई ख़ुशबू नहीं आई

    किसी अच्छे पहने इत्र की, किसी रेशमी कपड़े के मुलायम स्पर्श की,

    उन हाथों में मैंने हमेशा महसूस की एक तीक्ष्ण गंध,

    पसीने और ख़ून की, बेबसी और लाचारी की,

    उन हाथों पर निशान थे इंद्र का रथ खींचने से बने हुए,

    उन हाथों पर मिट्टी थी जो लगी रह गयी थी

    मोहनजोदड़ो के स्नानागार की आख़िरी ईंट रखते वक्त;

    दोस्तों मैंने उन हाथों का स्पर्श अपने सर पर, अपनी पीठ पर

    अपने चेहरे पर महसूस किया है,

    वो हाथ खुरदुरे होते हुए भी इतने मुलायम थे

    कि मेरी आँखों से ढलक जाते हैं आँसू

    जब भी मेरे चित्त पर लौट आते हैं वो हाथ,

    वो हाथ

    वो हाथ मुझे रात भर नहीं सोने देते

    मैं सपने में देखता हूँ वो हाथ हर रोज,

    वो हाथ सिर्फ़ हाथ नहीं रहते

    वो एक बूढ़े बड़ के पेड़ में बदल जाते हैं

    और वो पेड़ धंस जाता है मेरी पीठ के

    ठीक बीच में मेरी रीढ़ की हड्डी के पास,

    मेरी रीढ़ मेरे पिता के खुरदुरे हाथ हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : रविंद्र कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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