ओ चाँद ज़रा हौले हौले से उतर आना
o chaand zara haule haule se utar aana
सीमा असीम सक्सेना
Seema Aseem Saxena

ओ चाँद ज़रा हौले हौले से उतर आना
o chaand zara haule haule se utar aana
Seema Aseem Saxena
सीमा असीम सक्सेना
और अधिकसीमा असीम सक्सेना
मेरी पलकों से बुहारे आँगन में
मैंने नख शिख शृंगार करके
ख़ुद को सजा लिया है
बालों में महकता हुआ गजरा भी लगा लिया है
माँग टीका सजाकर हरी चुनरी ओढ़ ली है
ओ चाँद आज शरद पुर्णिमा के दिन मेरे अँगने में
हौले से चुपके से उतर आना
कि तेरे आने के इंतज़ार में निर्जल व्रत रखा है
खीर बनाकर और लोटे में जल भर कर रखा है
ओ चाँद तू बस हौले से उतर आना
आज पूरे चाँद के आने की ख़ुशी से
मेरा मन विभोर हुआ जाता है
रोम-रोम सिहर रहा है
कि पल कटे से कट नहीं रहे हैं
तो ओ चाँद जरा हौले से
चुपके से और ज़रा जल्दी से मेरे आँगन में उतर आना
- रचनाकार : सीमा असीम सक्सेना
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.