नीति आ प्रेम
niti aa prem
सियाह कारी राति आ
दुनियाक हो-हल्लासँ
कतहु बेसी जोरसँ चिचिअबैत
अपन अन्तरात्मा
इजोरियामे नहायल नदीक कलरव
ओकर बाउलपर लिखल प्रेमक नाम
आ सौंसे दुनियाक ओहिपर केन्द्रित तिक्ख दृष्टि
जाहिमे अगबे घृणा अछि
आ जँ ओकर सक्क रहय
तँ नदीक गादिसँ मेटा देअय
एहि अढाइ आखरक अस्तित्व
ओहि नदीक तटपर विवश अछि
संवेदनशील मनुक्ख
नष्ट कऽ देबाक लेल अपन
मानवीय संवेदना
आ बदलि रहल अछि ओ स्वयंकेँ
कोनो धरगर औजारमे
जाहिसँ अपन अस्तित्वक लेल
ओ बना सकय
अपन हित हाथमे स्पष्टतः
आ जेँ कि प्रेमक सौन्दर्यबोध
समूह थिक
तेँ ओ सर्वथा मुक्त होइछ
पापबोध आ कुंठासँ
आ स्पष्ट एतेक जे
ओकरा कखनो जरूरति नहि होइछ
अपन शब्द लेल
ककरो आनक आवाजक
ओ जनैत अछि
अपन हिस्साक तामस आ मनौअलिकेँ
स्वयं प्रकट करब
तेँ हमर प्रेम कविता
अहाँ आयब हमरा लग
ओहि दिन
जखन गबैत रहब हम
मृत्यु गीत
जरि रहल होयत हमर देह
आ मुक्त होइत रहत हमर आत्मा
एखन हम जीवन यात्राक विवशतामे छी
जकर पहिल शर्त्त थिक प्रेम कविताक मृत्यु
बिनु मारने अहाँकेँ संभव नहि
साम, दाम, दंड, भेदक नीति अपनेनाय
आ विजित होयब जीवन-समरमे।
- पुस्तक : फूजल आँखिक स्वप्न (पृष्ठ 21)
- रचनाकार : रोमिशा
- प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
- संस्करण : 2019
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