नदियाँ और बेटियाँ
nadiyan aur betiyan
उन्नीस वर्षीय हिमानी के लिए… एक सुदूर पहाड़ी ग्रामीण इलाक़े से आई लड़की, जो स्नातक के लिए महिला महाविद्यालय हल्द्वानी प्रवेश लेती है। साल भर खेल के क्षेत्र में जीवन सँवारने का लक्ष्य लेकर महाविद्यालय की अनेकों प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करती रही। बैडमिंटन में उच्चस्तर की सक्षम खिलाड़ी होने पर भी जिसके बेहतरीन खेल, भविष्य और प्रेरणा को आंतरिक गुटबाज़ी और प्रशासनिक ठगबाज़ों ने आगे नहीं बढ़ने दिया।
जैसे सुदूर पहाड़ों से आती हैं नदियाँ
ऊँचे पर्वतों
ताज़ा हवा और
हरे पत्तों पर बिसरी ओस की बूँदों को
उलाँघकर मैदानों तक
ठीक वैसे ही हिमाल की बेटियाँ
उलाँघकर आती हैं मैदानों पर
असंख्य देहलियाँ
अनगिनत भेड़ें
अलौकिक बुरूंश1 और क्वेराल2 के पुष्प
मैदानों में आकर
नदियाँ सींचती हैं
तीव्र-निरंतर और नीरस
पिंजरों में बंद
शहरों के फड़फड़ाते ख़्वाबों को
फिर भी मोड़ दी जाती उसकी दिशा
क़ैद कर लिया जाता है उसका संवेग
बदल दिया जाता उसका रंग
और उसकी देह में ठूँसी जाती है
तमाम सभ्यताओं की गंध
मैदानों पर आकर
मेहनत और लगन से
बेटियाँ खींचती हैं
अपने सपनों की लकीरें
ईजा-बाज्यू3 और दाज्यू4 भेजते हैं दुआएँ
भेजते हैं—
काफल5, ककड़ी, बिरुड़े6 और घी
बेटियाँ जब बढ़ने लगती हैं
शहर में
अपने भविष्य के लिए
तभी
खींच लिए जाते हैं
उसके हाथ
हाशिये पर रख दिए जाते हैं उसके ख़्वाब
पूछे जाते हैं अनगिनत सवाल
निर्दोष वह जब लड़ती है
हक़ की लड़ाई
बोला जाता है उसे गँवार
पढ़ाई जाती हैं—
संस्कार और मर्यादाओं की पोथियाँ
बेटियों को सताया जाता है
दी जाती हैं
गालियाँ
मैदानों पर आने के लिए
उनके क़दमों को बाँध दिया जाता है
तोड़ दी जाती सीढ़ियों पर चढ़ने की आस
मोड़ दिए जाते हैं उनके रास्ते
छीन लिया जाता है उनसे
उसके जीवन का
हौसियापन7
- रचनाकार : हिमांशु विश्वकर्मा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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