Font by Mehr Nastaliq Web

लौह अतिथिगृह

lauh atithigrih

अनुवाद : दिनेश चमोला

ठीला सित्तू

ठीला सित्तू

लौह अतिथिगृह

ठीला सित्तू

और अधिकठीला सित्तू

    (1)

    अँधेरे में फुसफुसाते

    चारों ओर फैलती गईं आवाज़ें

    सारी रात गूँजते हुए दु:ख ने

    परेशान किया है

    आधुनिक सपने को

    गहरी प्रत्याशा से

    और एक गहरी निश्वास से टोहते-टटोलते

    (2)

    हम लेटे रहे देर तक

    भूल के पेड़ के नीचे

    भाग्य के शिकार हुए

    निर्दयता से दबोचे गए

    पसीने बहाती वाहिनी में

    फ़ासिस्टों द्वारा

    घरों और खेतों से अलग होकर

    हमने बनाई सड़कें 'महान एशिया' के लिए

    फ़ासिस्टों के ये शब्द

    शहद में लिपटे ज़हर जैसे हैं

    (3)

    मित्रों, क्या तुम्हें याद है?

    नहीं तो फिर सुनो

    हम छोटी-सी शालाओं में

    एकत्रित हो गए

    जंगली जानवरों की तरह

    तारों से बिंधे

    हम बैठे रहे रात भर

    मच्छरों के प्रहार से घायल

    सड़कों पर गर्दन लटकाए

    हमारा पसीना धरती पर बहता रहा

    फिर फ़ासिस्टों ने चारों ओर से

    हम पर घूँसे बरसाने शुरू कर दिए

    हमारे ख़ून से लाल हो गई धरती

    बन जाने दो

    धान वियुजयात को स्मारक

    पसीना बहाती

    वाहिनी की धरती का

    (4)

    आओ हम आपको फिर बताएँ

    हमारे फटे, गंदे, बुसे और बदबू-भरे कपड़ों में

    पड़ गए थे जूँ

    जब कभी बहती थी हवा

    हमारा जी मिचलने लगता था

    थकावट ने हमें मार दिया

    हमारे सीने फटने लगे थे

    गले में अटकी थी साँस

    लेकिन

    फ़ासिस्ट हमें

    मारते-पीटते रहे

    उन्होंने मज़बूर किया हमें

    अमानवीय कार्य करने के लिए

    खिलाते रहे हमें रेत-मिले

    घटिया चावल

    और सड़ी मछलियाँ

    हमें हैज़ा हो गया

    और दम तोड़ गई हमारी मेहनत

    हम हवा में बीमार पड़े

    और सहायता के लिए चिल्लाते

    चीख़ते रहे

    कुछ को चक्कर आते रहे

    कुछ जहाँ बैठे थे

    वहीं मर-मरा गए

    उन्हें दफ़ना दिया गया

    आनन-फ़ानन

    दवाइयाँ दुर्लभ थीं

    इसलिए तय था सबका मर जाना

    कुछ बच गए अकड़ी देह लिए

    यही हमारा भाग्य था

    (5)

    हमने भागना चाहा लेकिन हम मारे गए

    रबड़ के पौधे काले हो गए

    बंदूक़ के धुएँ से

    तेनासेरिन की पहाड़ियों से

    भाग पड़े हम अपनी ओर

    गाँव पहुँचने पर

    हमने आराम किया सड़क पर

    काम की थकावट कम करने के लिए

    और सुखाया अपना पसीना

    अभी भी नदिया में

    तैर रहे थे छोटे-छोटे तालाब

    सुनाई देती थी मंदिरों, मठों से गूँज रही

    काँसे की घंटियाँ

    प्रेमी व्यक्ति जैसे लौटा हो—

    रेवड़ों के झुंड-सा पहाड़ों से।

    हम उत्सुकता से दौड़ पड़े

    अपनी माटी को लेने

    उसे फिर से पा लेने और उसका सत्कार करने

    लेकिन वह चल पड़ी

    जैसे कि नहीं

    जानती हो हमें

    अथवा नहीं सुना हो हमें

    महसूस किया हमने

    ज़िंदगी जुदा हो गई है हमसे

    हमारे दिल टूट गए

    ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते रहे हम

    कुम्हलाए फूल-से झर गए

    और ज़मीं पर बिखर गए हम

    (6)

    पत्नी डरती हुई घर लौटी

    उसका दिल धड़कता था

    एक ढोल की तरह

    ऐसी बुरी धड़कन कभी नहीं झेली थी उसने पहले कभी

    गाँव से घर तक की

    सड़क पर चलते हुए

    वह बिलखती हुई गई

    गाँव के मंदिर की ओर

    और प्रार्थना की

    अपने पति की सुरक्षा की

    जैसे ही

    पल भर के लिए उसे नींद आई

    एकाएक

    दरवाजे पर सुनी उसने

    किसी के बूटों की आहट

    उसने सोचा कि

    देख लिया है उसने अपने पति को

    जो सिर झुकाकर,

    पतली सँकरी गली से प्रवेश कर रहा है

    लेकिन अचानक

    ग़ायब हो गया वह

    संकेत पाकर उठ खड़ी हुई वह

    जैसे ही हमने देखी अपनी प्रतिच्छाया

    टूट पड़ा कौओं का समूह

    पेड़ों से भय लगा टपकने

    कुत्ते रोने लगे कोरस में

    फटे गले से उन्होंने पीछे किया हमारा

    और भाग जाना पड़ा

    गाँव से भी हमें

    दुर्भाग्य ने मौत में भी सताया

    (7)

    सुना था हमने

    यह अँधेरे में खोई हुई

    आत्माओं द्वारा सुनाई गई कहानी है

    फ़ासिस्ट सम्वत की खिजी-खिजाई कहानी

    यह पूरी कहानी

    एक लंबा प्रलाप है

    मनुष्यों के जीवन एक-एक कर उठ गए

    जैसे कि तोड़ ले जाती है हवा

    सूखे पत्तों को

    तेज़ी से

    निरंतर

    यह कथा है

    ख़ून चूस लेने की

    बहुत कम सुनी जाने वाली

    दूसरे विश्व युद्ध की धरोहर

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन बर्मी कविताएँ (पृष्ठ 136)
    • संपादक : चन्द्र प्रकाश प्रभाकर 'मौतीरि'
    • रचनाकार : ठीला सित्तु
    • प्रकाशन : इरावदी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1994

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY