Font by Mehr Nastaliq Web

इस तरह एक कविता का बच पाना

is tarah ek kavita ka bach pana

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

अन्य

अन्य

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

इस तरह एक कविता का बच पाना

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

और अधिकशैलेंद्र कुमार शुक्ल

    सुशील भैया और दीपशिखा दी के लिए

    सारी धरती बारिश में भीग रही है
    भीग रही है धरती 
    सब कुछ बारिश में भीग रहा है 
    बारिश-बारिश में भीग रही है 
    रात-रात में भीग रही है 
    अँधेरा अँधेरे में

    आँखें भीग रही हैं 
    भीग रहे हैं आँखों में सपने 
    इस तरह एक समंदर भीग रहा है 
    भीग रहे हैं घने लंबे काले केश 
    इस तरह भीग रहा है राजपथ 
    कश्मीर से कन्याकुमारी तक 
    सारे रंग भीग रहे हैं देह के
    शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गंध 
    सब कुछ भीग रहा है इस बारिश में

    चैत की चाँदनी कार्तिक में भीग रही है 
    भीग रही है दिवाली इस बार होली में
    डूब रहा है गणतंत्र 
    आज़ादी भीग रही है इस बारिश में
    इस तरह धरती बारिश में भीग रही है
    भीग रहे हैं गौरैया के पंख 
    बुलबुल की चोटी भीग रही है बारिश में 
    भीग रहे हैं खंजन और पिक एक साथ 
    तितली के नाज़ुक पंख भीग गए हैं बारिश में 
    एक रात अपनी काली सर्द आँखों में डूब गई है 
    एक भोर सूरज के बिना दिशाहीन होती जा रही है 
    यह बारिश सावन की बारिश नहीं 
    फगुआ के बोल भीग गए हैं 
    भीग गया है चैता का राग 
    ढोलक की थाप भीग गई है बारिश में इस बार 
    भीग गई है भौजाई की चुनरिया 
    इस बे-मौसम बरसात में

    बचा है यह प्रेम 
    जिसे यह बारिश कितनी बार भिगा चुकी है 
    बची है यह लय जो बारिश में कितनी बार डूबी है 
    बचा है यह गीत बारिश में घुलने के बाद भी 
    बची है रोशनाई क़लम की नोक में एक बूँद ही सही 
    काग़ज़ का एक टुकड़ा बच गया है भीगते-भीगते 
    तुम्हारी हथेलियों के नीचे एक कविता का बच पाना 
    इस तरह संभव हो सका है इस बारिश में

    जब बारिश में
    भीग चुकी है
    सारी धरती।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सावन सुआ उपास (पृष्ठ 99)
    • रचनाकार : शैलेंद्र कुमार शुक्ल
    • प्रकाशन : सर्वभाषा प्रकाशन
    • संस्करण : 2023

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY