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दंगे में स्त्री

dange mein stri

नीरज नीर

अन्य

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नीरज नीर

दंगे में स्त्री

नीरज नीर

और अधिकनीरज नीर

    दंगों में जब नंगी की जाती है स्त्री

    तो स्त्री नहीं,

    नंगी होती है पूरी सभ्यता...

    स्त्री की छाती पर रखे गए हाथ

    पूरी सभ्यता की छाती पर

    धरे गए पाँव बन जाते हैं।

    दंगों में बलत्कृत, अपहृत स्त्रियाँ

    अपने लिए नहीं डरती,

    वे डरती हैं

    सभ्यता के विनष्ट होने के भय से,

    वे डरती हैं

    दूसरी स्त्रियों को नंगी किए जाने के भय से,

    गोकि वे जानती हैं

    हर पुरुष में दमित होती है

    किसी किसी स्त्री को नंगी करने की इच्छा...

    स्त्रियाँ अपनी छाती पर ढोती हैं

    अपने समाज की इज़्ज़त का भार,

    स्त्रियाँ अपनी योनि में छुपाए रहती है

    समाज के पुरुषार्थ का खोखला दर्प...

    सियालकोट से मणिपुर तक

    भोपाल से झारखंड के गाँवों तक

    नंगी की जाती रही है स्त्रियाँ

    धर्म, मज़हब, भाषा और विश्वास के नाम पर...

    सबसे ज़्यादा नंगी की जाती हैं स्त्रियाँ

    प्रेम करने के जुर्म में

    अपने ही गाँव, अपने ही मुहल्ले के

    चाचा, मामा, मौसा और भाइयों के द्वारा

    गोकि स्त्री के प्रेम करने से गँवाई इज़्ज़त

    वे हासिल कर लेते हैं स्त्री को नंगी करके...

    नंगी कर दी जाती है स्त्रियाँ

    कभी-कभी तो

    बतलाकर डायन...

    लेकिन डायन बताई गई स्त्रियाँ

    कभी नहीं खा पाई हैं आजतक

    नंगी करने वाले पुरुषों का कलेजा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीरज नीर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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