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बनसुखलाल

banasukhlal

आकाश वर्मा

अन्य

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आकाश वर्मा

बनसुखलाल

आकाश वर्मा

और अधिकआकाश वर्मा

    आँखें बंद किए बैठे हैं वे

    जिन्होंने बताए थे बनसुखलाल को गर्म हवा के ख़तरे,

    उस हवा से जलती झोपड़ी की तश्वीर

    अपने घर की सबसे ख़ूबसूरत जगह पर सजा रखी है

    उन्होंने

    लेकिन किसी ने नहीं बताया बनसुखलाल को

    कि जब उसने काटी लकड़ियाँ

    तो छपने वाले पुरस्कारों के काग़ज़ बने

    और बनीं, ढेर सारे आयोजनों में बोले गए भाषणों के बाद

    मिले तमगों के सजने की आलमारी

    पता नहीं कैसे

    बनसुखलाल की झोपड़ी ने बहुत सारे ज्ञान दिए, दुनिया को

    और दी है

    ढेर सारी ताक़त और ऊर्जा

    पर बनसुखलाल कभी जान नहीं पाया

    कि झोपड़ी में कैसे लगते हैं वातानुकूलकों के पाइप

    कैसे बिछाई जाती है मखमली कालीन,

    वह भी साफ़-साफ़ ज़मीन पर

    वह केवल टँगता रहा तश्वीर बनकर

    कभी खेतों में फरसा लिए

    कभी हँसिया हथौड़ा ले के देने लगता है नारा—

    मजदूरों एक हो का।

    कभी मकानों को और ऊँचा बनाने में हाँफने लगता है

    हर जगह भागता है बनसुखलाल

    पर कुछ समझ नहीं पाता है कभी भी।

    तश्वीर लेते समय,

    चलाए गए आंदोलन के समय

    ही भूख की पीड़ा से टभकते समय।

    वह हमेशा

    उस बताई गई गर्मी वाली झोपड़ी में लौट जाता है।

    बन जाता है हमेशा ऊँचाई का पायदान

    कविता, कहानियों में कहने की गाथा और

    ढेर सारे हो सकने वाले शोधकार्यों की पृष्ठभूमि।

    सब कुछ लद जाता है उसकी पीठ पर वैताल की तरह

    ओहदे की सीढ़ी का दरवाज़ा खुलता रहता है

    सभी के लिए

    लेकिन वह आज भी, सुबह उठके जाता है पूरब,

    साँझ ढले आता है पश्चिम

    और बताई गई गर्म हवा के ख़तरे के बीच

    सो जाता है चुपचाप-सा

    और किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकाश वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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