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आँखि सभ

ankhi sabh

विजेता चौधरी

अन्य

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विजेता चौधरी

आँखि सभ

विजेता चौधरी

और अधिकविजेता चौधरी

    कैक्टस केर जंगलमे

    आइ-काल्हि आँखि सभ उगऽ लगलैये

    काँट जकाँ

    तेँ आँखि सभसँ त्रसित रहैत छी हम

    नान्हिटामे

    पागलसँ अघोरे डर होइत छल

    अन्धकार, शून्यता, बूढ़ कदम केर गाछ

    भूत-प्रेत दैत्यक खिस्सा संगहि डिहबार थानक पूजा

    सभ किछु डेराओन लगैत छल

    सर्द त्रासक भयावहता

    जेना हरदम चारूभरि छिड़ियायल रहैत छल

    भीतर एखनहुँ विद्यमान अछि भय ओहिना

    मुदा एखनि डरक परिभाषा बदलि गेल अछि

    आब पागल किंवा अन्धकारसँ नहि

    सभ्य प्रतिष्ठित आँखि सभ देखि डर होइत अछि

    भय होइत अछि ओहि आँखि सभमे झलकैत पिपासासँ

    जे छलकि जाइत छैक हरसट्ठे

    साँच कही तँ इजोतसँ डर लगैत अछि आइ-काल्हि

    भीड़केँ सामूहिक आँखि सभ देखि डर लगैत अछि

    जतय हजारहु आँखि सभ एकहि संग एकवस्त्रे बनि

    हथोरैत अछि नांगट दृष्टिसँ अंग-प्रत्यंग

    तेँ आइ-काल्हि सम्भ्रान्त आँखि सभसँ डर लगैत अछि

    मुदा एक सीमाक बाद

    सिंचित त्रासक ज्वालामुखी सभ

    स्वयं विस्फोट कऽ उठैत छैक

    तहन जे परिणति होइत छैक से अकल्पनीय

    आखिर कुदृष्टिक संत्रास

    असुरक्षाक घेरामे

    कहियाधरि कैद रहतैक साहस

    कहियाधरि मौन रहतैक चिचियाहटि

    तेँ त्रासकेँ बनाकऽ हथियार

    सुड्डाह करऽ पड़तैक कैक्टस केर जंगल

    जतय मात्र आँखि सभ उगैत छैक

    संभवतः तेँ किंचित बहुत दिनसँ

    भितरे-भीतरे सुनगि रहल छी हम

    एकटा आगि हमरा भीतर

    निरन्तर बरि रहल अछि

    पजरि रहल अछि

    विस्फोटक प्रतिक्षामे!

    स्रोत :
    • पुस्तक : धाराक विरुद्ध (पृष्ठ 97)
    • रचनाकार : विजेता चौधरी
    • प्रकाशन : नवारम्भ
    • संस्करण : 2019

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