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रैदास जन्मे कउ हरस का

raidaas janme ka.u haras ka

रैदास

रैदास

रैदास जन्मे कउ हरस का

रैदास

और अधिकरैदास

    रैदास जन्मे कउ हरस का, मरने कउ का सोक।

    बाजीगर के खेल कूं, समझत नाहीं लोक॥

    रैदास कहते हैं कि जन्म के समय कैसा हर्ष और मृत्यु पर कैसा दुःख! यह तो ईश्वर की लीला है। संसार इसे नहीं समझ पाता। जिस प्रकार लोग बाज़ीगर के तमाशे को देखकर हर्षित और दुःखी होते हैं, उसी प्रकार ईश्वर भी संसार में जन्म−मृत्यु की लीला दिखाता है। अतः ईश्वर के इस विधान पर हर्षित अथवा दुःखी नहीं होना चाहिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 80)
    • रचनाकार : डॉ. जगदीश शरण
    • प्रकाशन : साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2011

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