कंज-नयनि मंजनु किए
kanj nayani manjanu kiye
कंज-नयनि मंजनु किए, बैठी व्यौरति बार।
कच-अंगुरी-बिच दीठि दै, चितवति नंदकुमार॥
खंजन पक्षी के समान सुंदर नेत्रों वाली नायिका स्नान के पश्चात् बैठकर अपने बालों को सुलझा रही है और सुखा भी रही है। बालों को सुखाने और सुलझाने के लिए वह उनमें अपनी अंगुलियाँ फँसा देती है और उसके बीच में से बड़ी कुशलता से अपने प्रिय नायक को भी देख लेती है। स्पष्ट शब्दों में कह सकते हैं कि बाल सँवारते और सुखाते समय वे प्रायः मुख पर आ जाते हैं जिससे देखने में बाधा उत्पन्न होती है। नायिका ने जैसे ही अपने बाल सुखाना शुरू किया वैसे ही वहाँ नायक आ गया और वह उसे देखने का लोभ नहीं छोड़ सकी। अतः उसने बड़ी कुशलता से अंगुलियों के द्वारा बालों के बीच में झरोखा बना लिया और उसी से नायक को देखने लगी।
- पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 216)
- संपादक : हरिचरण शर्मा
- रचनाकार : बिहारी
- प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
- संस्करण : 2007
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