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अति परचै तैं होत है

ati parachai tain hot hai

वृंद

वृंद

अति परचै तैं होत है

वृंद

और अधिकवृंद

    अति परचै तैं होत है अरुचि अनादर भाय।

    मलयागिरि की भीलनी चंदन देत जराय॥

    भावार्थ: कवि कहता है कि जिनसे अधिक परिचय या जान−पहचान होती है, उसकी स्वभावतः उपेक्षा भी हो जाती है। इस तरह कई बार अधिक परिचय से अरुचि तथा अनादर भी हो जाता है। जैसे मलय पर्वत पर चंदन के वृक्ष होते हैं लेकिन वहाँ पर रहने वाली भील−स्त्रियाँ चंदन को खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में जलाती हैं। अर्थात् वे चंदन का महत्व नहीं आंकती है और उसे साधारण लकड़ी की तरह प्रयुक्त करती हैं। यह चंदन का अनादर ही है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सतसई सप्तक (पृष्ठ 289)
    • संपादक : श्यामसुंदर दास
    • प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडमी
    • संस्करण : 1931

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    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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