Font by Mehr Nastaliq Web

इस बार के नोबेल विजेता लास्ज़लो क्रास्ज़्नाहोरकाई के 10 नीतिवचन

यह बात अपने दिमाग़ में घुसा लो—चुटकुले ज़िंदगी की तरह होते हैं।

~

जब मैं काफ़्का को नहीं पढ़ रहा होता हूँ, तब मैं काफ़्का के बारे में सोच रहा होता हूँ। जब मैं काफ़्का को नहीं सोच रहा होता हूँ, तब मैं काफ़्का के बारे में सोचने की स्मृति में होता हूँ। और कुछ देर तक उनके बारे में सोचना भूलने पर, मैं उन्हें फिर से निकालकर पढ़ने लगता हूँ। यह सिलसिला इसी तरह चलता रहता है।

~

जो चीज़ें बुरी तरह शुरू होती हैं, वे बुरी तरह ही ख़त्म होंगी। मध्य में सब ठीक रहता है, तुम्हें बस अंत की चिंता करनी चाहिए।

~

ऐसा नहीं है कि मैं यह नहीं समझता कि एक व्यक्ति को मरना क्यों पड़ता है, बल्कि मैं यह नहीं समझ पाता कि एक व्यक्ति को जीना क्यों पड़ता है!

~

बुराई का अस्तित्व है और दुख की बात यह है कि अच्छाई कभी उससे आगे नहीं बढ़ पाती।

~

हर चीज़ के पीछे के कारण को तलाशना हमेशा ज़रूरी नहीं होता, क्योंकि हर वजह बेबुनियाद होती है। कारण एक निश्चित नज़रिये से ही कारण दिखाई देता है।

~

उसने महसूस किया : मृत्यु—मायूसी और स्थायी अंत नहीं, बल्कि एक प्रकार की चेतावनी है।

~

प्रकाश ने उसे आशा दी, लेकिन वह उससे डरता था।

~

स्मृति भूल जाने की कला है।

~

बाहर एक युद्ध चल रहा है और इस निराशा भरी रात में जागना तभी संभव है—जब तुम पूरी तरह निर्दय होने के लिए तैयार हो।

•••

अँग्रेज़ी से अनुवाद : हरि कार्की

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

25 अक्तूबर 2025

लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में

25 अक्तूबर 2025

लोलिता के लेखक नाबोकोव साहित्य-शिक्षक के रूप में

हमारे यहाँ अनेक लेखक हैं, जो अध्यापन करते हैं। अनेक ऐसे छात्र होंगे, जिन्होंने क्लास में बैठकर उनके लेक्चरों के नोट्स लिए होंगे। परीक्षोपयोगी महत्त्व तो उनका अवश्य होगा—किंतु वह तो उन शिक्षकों का भी

06 अक्तूबर 2025

अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव

06 अक्तूबर 2025

अगम बहै दरियाव, पाँड़े! सुगम अहै मरि जाव

एक पहलवान कुछ न समझते हुए भी पाँड़े बाबा का मुँह ताकने लगे तो उन्होंने समझाया : अपने धर्म की व्यवस्था के अनुसार मरने के तेरह दिन बाद तक, जब तक तेरही नहीं हो जाती, जीव मुक्त रहता है। फिर कहीं न

27 अक्तूबर 2025

विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना

27 अक्तूबर 2025

विनोद कुमार शुक्ल से दूसरी बार मिलना

दादा (विनोद कुमार शुक्ल) से दुबारा मिलना ऐसा है, जैसे किसी राह भूले पंछी का उस विशाल बरगद के पेड़ पर वापस लौट आना—जिसकी डालियों पर फुदक-फुदक कर उसने उड़ना सीखा था। विकुशु को अपने सामने देखना जादू है।

31 अक्तूबर 2025

सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

31 अक्तूबर 2025

सिट्रीज़ीन : ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

सिट्रीज़ीन—वह ज्ञान के युग में विचारों की तरह अराजक नहीं है, बल्कि वह विचारों को क्षीण करती है। वह उदास और अनमना कर राह भुला देती है। उसकी अंतर्वस्तु में आदमी को सुस्त और खिन्न करने तत्त्व हैं। उसके स

18 अक्तूबर 2025

झाँसी-प्रशस्ति : जब थक जाओ तो आ जाना

18 अक्तूबर 2025

झाँसी-प्रशस्ति : जब थक जाओ तो आ जाना

मेरा जन्म झाँसी में हुआ। लोग जन्मभूमि को बहुत मानते हैं। संस्कृति हमें यही सिखाती है। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है, इस बात को बचपन से ही रटाया जाता है। पर क्या जन्म होने मात्र से कोई शहर अपना ह

बेला लेटेस्ट