विनायक दामोदर सावरकर की संपूर्ण रचनाएँ
उद्धरण 7

श्रुति, स्मृति, पुराण आदि पुरातन ग्रंथों को हम अत्यंत कृतज्ञतायुक्त आदर से और आत्मीयता से सम्मान करते हैं किंतु ऐतिहासिक ग्रंथों के रूप में अनुल्लंघनीय धर्म-ग्रंथों के रूप में नहीं। उसमें दिया हुआ सारा ज्ञान-विज्ञान आज के विज्ञान की कसौटी पर कसेंगे और तत्पश्चात् आज राष्ट्र-धारणा के लिए जितना आवश्यक प्रतीत होगा उतना ही हम निर्भय होकर आचरण में लाएँगे।

मनुष्य रचित परिवर्तनीय और कभी-कभी परस्पर विरोधी ग्रंथों में क्या लिखा है, उसी के आधार पर कोई सुधार या परिवर्तन करना उचित है अथवा अनुचित है—इसका निर्णय न करते हुए वह विशिष्ट सुधार विशिष्ट परिस्थिति में राष्ट्र-धारणा के लिए हितकर है या नहीं, इस प्रत्यक्ष प्रमाण को विचारार्थ लिया जाना चाहिए और परिस्थिति के अनुसार निर्बंधों-नियमों को भी बदलते रहना चाहिए।