इलाचंद्र जोशी के निबंध
भिन्नरूचिहिं लोक
रुचि की विभिन्नता भोजन से लेकर साहित्य-रसास्वादन तक सभी क्षेत्रों में पाई जाती है। इस रुचि के पीछे कोई वस्तुगत कारण नहीं होता, बल्कि मनोवैज्ञानिक कारण होता है। पर यह मनोवैज्ञानिक: कारण ऐसा प्रबल होता है कि दूसरों की किसी भी शिक्षा, निर्देशन या सुझाव
आज का साहित्य
आज साहित्य का प्रश्न जीवन से संबंधित दूसरे बहुत-से प्रश्नों से उलझकर इस कदर जटिल बन गया है कि उसकी कोई सहज-सरल परिभाषा संतोषजनक नहीं हो सकती। प्राचीन काल में कोई भी साहित्य-व्याख्याकार या आलोचक केवल तीन शब्दों में साहित्य की ऐसी परिभाषा प्रस्तुत कर सकता
कला और नीति
कला का मूल उत्सव आनंद है। आनंद प्रयोजनातीत है। सुंदर फूल देखने से इमे आनंद प्राप्त होता है; पर उससे हमारा कोई स्वार्थ या प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। प्रभात की उज्ज्वलता और संध्या की स्निग्धता देखकर चित्त को एक अपूर्व शांति प्राप्त होती है; पर उससे हमें
साहित्य में वैयक्तिक कुंठा
व्यक्तिगत कुंठा मनुष्य की आधुनिक सभ्यता की देन है। आज के सभ्य जीवन में जो ऊपरी दिखावा, जो बनावटीपन आ गया है, उसने जीवन के सहज, सरल और स्वस्थ प्रवाह को चारों ओर से रूँध दिया है। इस अवरोध का फल यह देखने में आता है कि मनुष्य को पग-पग पर अपने भीतर के वास्तविक