
हिन्दी के सूफी संतों ने लोककथाओं को अपने आदर्शों के लिए अपनाया। लोककथाओं को इस तरह अपनाने का उत्साह, हिन्दी के हिन्दू-भक्त कवियों में नहीं देखा गया।
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